क्या सिर्फ दिमाग ट्रांसप्लांट करके इंसान को नया शरीर दिया जा सकता है?
क्या यह संभव है?
आज के वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार, केवल दिमाग को ट्रांसप्लांट करके किसी इंसान को नया शरीर देना अभी तक संभव नहीं हुआ है। हालांकि, इस पर कई वैज्ञानिक शोध किए जा रहे हैं, और कुछ प्रयोगों से संकेत मिलता है कि यह भविष्य में संभव हो सकता है।
तकनीकी चुनौतियाँ
- न्यूरल कनेक्शन को फिर से जोड़ना - दिमाग को एक नए शरीर से जोड़ने का सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि लाखों न्यूरॉन्स और तंत्रिकाएं (nerves) सही ढंग से री-कनेक्ट हों ताकि मस्तिष्क शरीर को नियंत्रित कर सके। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह कार्य "रॉकेट साइंस" से भी अधिक कठिन है【160】।
- रक्त संचार और ऑक्सीजन सप्लाई - दिमाग को ज़िंदा रखने के लिए निरंतर ऑक्सीजन और रक्त की आपूर्ति जरूरी होती है। अगर इस प्रक्रिया में कोई गड़बड़ हुई, तो दिमाग क्षतिग्रस्त हो सकता है【159】।
- स्पाइनल कॉर्ड को री-कनेक्ट करना - वर्तमान विज्ञान में किसी इंसान की रीढ़ की हड्डी (spinal cord) को पूरी तरह से जोड़ना संभव नहीं है। यदि किसी व्यक्ति का दिमाग ट्रांसप्लांट कर भी दिया जाए, तो भी वह नए शरीर को नियंत्रित नहीं कर पाएगा【159】।
पिछले प्रयोग और भविष्य की संभावनाएँ
- 1970 के दशक में वैज्ञानिकों ने बंदरों के सिर का ट्रांसप्लांट करने का प्रयोग किया था, जिसमें एक बंदर के सिर को दूसरे के शरीर में लगाया गया। हालांकि, यह बंदर केवल 8 दिनों तक ही जीवित रह पाया, और इसका शरीर लकवाग्रस्त (paralyzed) था【159】।
- हाल ही में चूहों और अन्य जानवरों पर प्रयोग किए गए हैं, लेकिन इंसानों पर इसे लागू करने के लिए अभी कई सालों का अनुसंधान बाकी है【160】।
- न्यूरो-नैनोबॉट्स (Neuro-nanobots) जैसे अत्याधुनिक तकनीकों पर शोध हो रहा है, जो दिमाग और शरीर को जोड़ने में मदद कर सकते हैं【160】।
नैतिक और दार्शनिक प्रश्न
अगर भविष्य में यह संभव हो जाए, तो कई नैतिक और कानूनी प्रश्न उठेंगे:
- क्या दिमाग वाला व्यक्ति ही वही इंसान होगा, या उसका नया शरीर उसे एक नया व्यक्ति बना देगा?
- अगर किसी अपराधी का दिमाग किसी दूसरे शरीर में ट्रांसप्लांट कर दिया जाए, तो क्या वह कानूनी रूप से वही अपराधी माना जाएगा?
- क्या लोग इस तकनीक का इस्तेमाल "अमरता" (immortality) पाने के लिए कर सकते हैं?
निष्कर्ष
फिलहाल, केवल दिमाग ट्रांसप्लांट करके नया शरीर देना विज्ञान कथाओं (science fiction) से ज्यादा कुछ नहीं है। हालाँकि, न्यूरोसाइंस में हो रही प्रगति भविष्य में इस विचार को हकीकत बना सकती है। लेकिन इसमें अभी भी कई वैज्ञानिक, नैतिक और तकनीकी बाधाएँ बनी हुई हैं【159】【160】।
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