हिंदी भाषा पर हो रहे विरोध पर एक विचारशील नजरिया
भाषा बुरी नहीं होती
सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि कोई भी भाषा बुरी नहीं होती। हर भाषा अपने आप में एक खजाना है, जो हमें नई सोच, नए दृष्टिकोण और नई संस्कृतियों से जोड़ती है। हिंदी, तमिल, बंगाली, मराठी, तेलुगु, गुजराती – सबकी अपनी चमक है।
हिंदी: आत्मा से जुड़ी एक डोर
हिंदी भारत की आत्मा का हिस्सा है। यह साहित्य, सिनेमा, कविता और संवादों की भाषा है। पर इसका मतलब यह नहीं कि अन्य भाषाएँ कमतर हैं। हमें भाषाओं को प्रतिस्पर्धा नहीं, सहयोग के रूप में देखना चाहिए।
विरोध की जड़ कहाँ है?
विरोध तब शुरू होता है जब कोई भाषा दूसरों पर थोपी जाती है। यह डर स्वाभाविक है, क्योंकि भाषा पहचान से जुड़ी होती है। पर अगर हिंदी को "एक सेतु" के रूप में देखा जाए, जो संवाद का माध्यम बने, तो शायद यह डर कम हो सकता है।
हर भाषा का सम्मान ज़रूरी
भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषाई संवेदनशीलता बेहद ज़रूरी है। यदि हम हिंदी को बढ़ावा देते हैं, तो यह भी सुनिश्चित करें कि तमिल, कन्नड़, असमिया या अन्य भाषाओं का मान भी बना रहे।
एकता का रास्ता भाषा से होकर जाता है
भाषा को दीवार नहीं, पुल बनाइए। जितनी भाषाएँ, उतनी कहानियाँ; और जितनी कहानियाँ, उतना प्यार। हमें एक-दूसरे की भाषाओं को अपनाना है, उनसे सीखना है, और अपनी विविधता को गर्व से अपनाना है।




